दशानन अबकी हार भी जाओ ना
जब अपने शीश चढ़ाया बार-बार तुमने
तब क्यों रोका यज्ञ में बलि की प्रथा दशानन
जंगल में तपस्वी हो रहे परेशान
राक्षस भंग कर रहे उनका तप
हत्यारे घूम रहे सत्ता पर काबिज होने
राम उलझ गए राजनीतिक मुद्दे में
दशानन तुम पर आई जिम्मेदारी भारी
अबकी बार तुम खुद ही हारो ना।
ज्ञानेंद्रियां हैं धोखा, कर्मेंद्रियां छलावा
तुम तो ठहरे ज्ञानी, समय की मांग समझो
हार ही में जीत है लंकेश इसे समझाओ
अबकी सबको बता कर हार जाओ ना
दशानन अबकी हार भी जाओ ना।
-अजय राय
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