रेत है,
पानी है, रवानी
है
यह गंगा
है, इस जमाने की एक
नदी है
बुढ़वा
मंगल, नाग नथैया
तमाम
महोत्सव की ताता थैया
भगीरथ के
पुरखों को तारने वाली
गंगा,
नदी है पानी, कीचड़
काई से भरी
स्नान,
मुक्ति, ठगी,
ढोंग, मोक्ष
पंडों,
पुरोहितयों, किवंदतियों
और मिथकों
की दास्तान
गंगा है
जो नदी है, जिसमें
पानी है
रेत है,
मछलियां हैं, मगरमच्छ
हैं
सरस्वती
एक नदी थी, उफनाती
हुई
भागती-दौड़ती,
पानी से लबालब भरी
उसके तट
पर रोज होते थे उत्सव
सरस्वती
अब खोज है, इतिहास
है
जहां
सरस्वती बहती थी, वहां
लेटी हुई है रेत
सुना है
नदी हमेशा नदी ही नहीं रहती
कहानियों,
किस्सों, झूठ
और फरेब से घिर
एक दिन वह
दफ्न हो जाती है जमीन में
बन जाती
है रेत, सरस्वती की
तरह।
गंगा में
रेत है, पानी है और
रवानी है
गंगा,
अभी एक नदी है, जिंदगी
है
थोड़ा
संभालिए खुद को
क्योंकि
नदी केवल नदी नहीं होती मरते
वक्त
उसके साथ
दफ्न हो जाती है एक सभ्यता भी।
अजय राय-धूमिल
जयंती पर
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