Wednesday, January 1, 2014

एक और साल

मुट्ठी में बंद थीं उम्मीदें
भींची थी मुट्ठी कस के
पसीने-पसीने हो सरक गया
रीत गया एक साल
बीत गया एक साल
दोस्तों की बधा‌इयों से उपजा
घड़ी की टिक-टिक से निकला
छल गया एक और साल 
 

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