जड़ की तलाश में भटका मैं दिल्ली
उमस थी, धूप थी, बारिश भी कुछ हुई
दरख़्त थे, पौधे भी, शाखें भी थीं नई
आसमान में वो कहाँ जिसकी तलाश थी।
जो जंग -ए-आजादी में हो गए फना
उनके बहाने खोजते थे शक्ल हम यहां
मालूम हुआ ये कि जंग है जारी, हलाक हैं सभी
जड़ सहेज सहेज रखने का दिल्ली में दम नहीं।
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स्वागत है २०१४ के बाद वापस ब्लॉग जगत में पदार्पण के लिए
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