चैती गुलाबों में दहकता बसंत
तपिश पीकर बिखेरता है सुगंध
तब मुंह चिढ़ाता है तपते सूरज को
सोचिए,
कैसे खुशबू मात दे देती है
चिलचिलाते एहसास को।
तपिश पीकर बिखेरता है सुगंध
तब मुंह चिढ़ाता है तपते सूरज को
सोचिए,
कैसे खुशबू मात दे देती है
चिलचिलाते एहसास को।