Friday, September 22, 2023

तलाश में

 जड़ की तलाश में भटका मैं दिल्ली

उमस थी, धूप थी, बारिश भी कुछ हुई

दरख़्त थे, पौधे भी, शाखें भी थीं नई

आसमान में वो कहाँ जिसकी तलाश थी।


जो जंग -ए-आजादी में हो गए फना

उनके बहाने खोजते थे शक्ल हम यहां 

मालूम हुआ ये कि जंग है जारी, हलाक हैं सभी 

 जड़ सहेज सहेज रखने का  दिल्ली में दम नहीं।

चीखता है।

 चीखता है


वो बच्चा चीखता है

गली में पड़ा है, चीखता है

मदरसे में खड़ा हो चीखता है

बेबात झगड़ता है चीखता है


संसद में खड़ा हो चीखता है

आंगन में उतरकर चीखता है


दफ्तर में पड़ा है, चीखता है

नुक्कड़ पर खड़ा हो चीखता है

हाशिये पर पड़ा है पर चीखता है

तुम्हारी बात कहता है

तुम्हीं पर चीखता है

हां बहुत बदमाश है बच्चा

बहुत ही चीखता है


कभी तुम खुद को देखो

अपनी चुप्पी को समझो

तुम्हारी बात ही तो कहता है

जब वो चीखता है।