रावण अंकल मुंह खोले, थोड़ा बड़ा
ताकि भीतर से रंग दूं लाल-लाल
जब नाभि में लगे राम का अग्निबाण
बदन में लगी आठ से उठी लपटों में
दमके बनारसी पान जमा मुखड़ा।
नन्हा रहमान नहीं डरता रावण से
पुतले की खूंखार मूंछें, लपलपाती जीभ रंगते वक्त
नहीं डरता है जब ठूंस-ठूंस कर भरा जाता है बारूद
वह डरता है तब, जब छिड़ती है लंका में जंग
जब दौड़ने लगती है वानरी सेना नारा लगाती हुई।
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-अजय राय
ताकि भीतर से रंग दूं लाल-लाल
जब नाभि में लगे राम का अग्निबाण
बदन में लगी आठ से उठी लपटों में
दमके बनारसी पान जमा मुखड़ा।
नन्हा रहमान नहीं डरता रावण से
पुतले की खूंखार मूंछें, लपलपाती जीभ रंगते वक्त
नहीं डरता है जब ठूंस-ठूंस कर भरा जाता है बारूद
वह डरता है तब, जब छिड़ती है लंका में जंग
जब दौड़ने लगती है वानरी सेना नारा लगाती हुई।
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-अजय राय
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