Sunday, November 17, 2013

इस घाट पर, उस घाट पर


रेत की सतह से उठता चांद
रश्मियां फेंकता है हर घाट पर
पानी पर तैरती किरणों का सोना
लुटता है हर एक घाट पर
 
नाविक जानते हैं नहीं टिकतीं
चांद की सोना किरणें पानी पर
किसी घाट पर नहीं लुटाता रश्मियां
चांद की किरणें की यह अदा है झूठ
झूठ है होना‌ रश्मियों का हर घाट पर
 
बुजुर्गों ने मोक्ष नगरी के निवासियों से
कहा था कभी कि सब कुछ है मिथ्या
चांद, नदी, घाट, रश्मियां, उत्सव और हम
माया नगरी है, लुट जाएगी
मोनू माझी को है इस बात पर भरोसा
फिर भी उसे खेनी पड़ती है नाव
इस घाट पर, उस घाट पर, हर घाट पर
 

-अजय राय 

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